Tuesday, September 25, 2012

अंतर्नाद ...


लोभ लिप्त इस दुनिया में,
एक दिलेर कर्ण चाहिए...
बेसहारा हुए वृद्धो को,
एक श्रवण सा पुत्र चाहिए...
तृप्ति मन की ढूँढ पाने को,
शबरी का चखा बेर चाहिए...
व्यभिचार से पीड़ित इस समाज को,
एक और इसा चाहिए...
पहचान को तरसते अनाथों को,
धाए माँ सी कोख चाहिए...
युद्ध और सीमाओँ में उल्झोँ को,
बुद्ध सा निर्वाण चाहिए,
अच्छे और बुरे के इस मंथन में,
रावण का पक्ष भी चाहिए...
इस सदी के 'माणूस' को,
एक और मसीहा चाहिए...

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