खुद के होने का गुमां क्यूँ करते हैं सब,
वक़्त की शमशीर कब किस को मिटा डाले,
जानता है कौन...
तूफानों से लड़ गुज़रने का दावा करते हैं सब,
तूफ़ानी दरिया कब अपना रुख मोड़ डाले,
जानता है कौन...
खुदा की बनायी कुदरत को रौंदते हैं सब,
खुदाई कब कुदरत का क़हर बरसा डाले,
जानता है कौन...
अपनी हदों को सोच समझ कर मान लें सब,
ये जन्नत कब खुद को दोज़ख बना डाले,
जानता है कौन....
वक़्त की शमशीर कब किस को मिटा डाले,
जानता है कौन...
तूफानों से लड़ गुज़रने का दावा करते हैं सब,
तूफ़ानी दरिया कब अपना रुख मोड़ डाले,
जानता है कौन...
खुदा की बनायी कुदरत को रौंदते हैं सब,
खुदाई कब कुदरत का क़हर बरसा डाले,
जानता है कौन...
अपनी हदों को सोच समझ कर मान लें सब,
ये जन्नत कब खुद को दोज़ख बना डाले,
जानता है कौन....
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