Tuesday, September 25, 2012

तिल्सिम..


ज़ख्म गहराते रहे, यूँ ही सहते रहे हम रात दिन,
तेरे ख़्वाबों की तिश्नगी में जिए जाते रहे...
फासले बढ़ते रहे,यूँ ही चलते रहे हम रात दिन,
तेरे दीदार की मयकशी में जिए जाते रहे...
तूफ़ान उफनते रहे,यूँ ही टकराते रहे हम रात दिन,
तेरे साहिल होने की जुस्तजू में जिए जाते रहे...
सब्र आज़माते रहे,यूँ ही थमते रहे हम रात दिन,
तेरे जुनूनी इश्क़ की तिल्सिम में जिए जाते रहे...

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