परवरदिगार,इस जहां को बना कर,कुछ तो हासिल हुआ होगा,
लबों पर अपने बाशिन्दोँ के जब,दुआओँ का असर सुना होगा...
आईने से चमकते पानी के चश्मों में फिज़ा का अक्स दिखा होगा,
उस पल बनाने वाले को खुद क़ाएनात पे गुमान हुआ होगा...
किस हसरत से ज़र्रे ज़र्रे को रोशन कर,हर शेह को चुना होगा,
हुस्न के नायाब जलवों का ताना बाना,नाज़ुक तारों से बुना होगा...
लबों पर अपने बाशिन्दोँ के जब,दुआओँ का असर सुना होगा...
आईने से चमकते पानी के चश्मों में फिज़ा का अक्स दिखा होगा,
उस पल बनाने वाले को खुद क़ाएनात पे गुमान हुआ होगा...
किस हसरत से ज़र्रे ज़र्रे को रोशन कर,हर शेह को चुना होगा,
हुस्न के नायाब जलवों का ताना बाना,नाज़ुक तारों से बुना होगा...
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