Tuesday, September 25, 2012

मनुहार...


ली के शुभ अवसर पर,अदभुद विस्मरणों की अनुभूति कहे,
जो सपनो में मिले अवसर,होली के मनमोहक रंगों से सजने का...
कान्हा जी को संग ले,गोपी बन,चंचल मन रचाए रास लीला,
एक पल भी विचलित ह्रदय ना माने,ऐसे स्वप्न से जगने का...
जिस क्षण रसिक बिहारी,मुस्कुरा कर बांसुरी की धुन छेड़ें,
निंद्रा में ही लीन रह,मन मयूर बन चाहे उसी ध्यान में बसने का...
बरसाने की राधा मैं,मेरे नटखट,अनूठे,गोपियों से घिरे श्याम वो,
जागूँ कभी ना,डर जो लागे,ईर्ष्या रुपी सर्प के डसने का..

No comments:

Post a Comment