Tuesday, September 25, 2012

वोह...

मुझे बेवफा कह कर,क्या खूब वफ़ा निभाता रहा,
ये ज़माना हर चंद मेरा सब्र आज़माता रहा...

बेरुख़ी को नफ़रत समझ मुझपर नश्तर चलाता रहा,
जहां चाहत न थी,वहाँ मुहब्बत के ख़्वाब सजाता रहा...

बे-परवाही से ,रोज़ रोज़,मुझे बेक़द्र यूँही बहलाता रहा,
जब वक़्त का पहिंया थम गया,तो अश्क़ बहाता रहा...

यादों के पन्नो पर,चंद हर्फ़ सजा,दिल को भरमाता रहा,
खयालों में सपने बुनं,ज़ख्मों का सिलसिला पनपाता रहा...

दफन हैं जहां बेपनाह दर्द,उनमें इज़ाफा फरमाता

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