Tuesday, September 25, 2012

धुंधलके...

जिस राह पर चली थी मैं,
मेरे निशाँ ही मिट गए...

सपने संजोये जिन अश्कों में,
वो क़तरा क़तरा छिन गए...

अनमोल थे वो तो आखिर क्यूँ ,
कूंचा-ऐ-इश्क़ में बिक गए...

सहरा सी बेसबब यादों में,
रातें गयीं और दिन गए...

इश्तिआक़ -ऐ- दीद ...


ये अकेलेपन का स्याह साया,जबरन ओढ़ा नहीं जाता,
तू शब् की सिलवटों में रहता है,उजालों में क्यूँ नहीं आता...
हक़ जताता रहा इतने तू,के अब ना हक़ जिया नहीं जाता,
उम्मीदों से भरे दामन को रुख से हटाने क्यूँ नहीं आता...
हर इक इसरार से बे हिस,अश्क पलकों पे संभाला नहीं जाता,
जमी इस ओंस की चादर को,समझाने क्यूँ नहीं आता...
तम्मनाएं,शिकवे गिले इनसे दिल को बहलाया नहीं जाता,
तू फ़खत सीराब-ऐ-ख़याल था,ये बतलाने क्यूँ नहीं आता...

भरोसा...


किताबों में सजती हैं रूहें बेदाग़,
ज़िन्दगी कहाँ इतनी हसीं होती है,
जज़्ब कर हर ज़ख्म को मुस्कुरा दे,
आशिकी कब इतनी बेहतरीन होती है...
मुक्कमल एक दर हो तो,
दर-ओ-दीवार दिखते हैं,
नए रंग रोज़ खिलते हैं,
इश्क से रोशन ज़मीन होती है...
न फना होने के दावे हों,
ना गिने रातों को तारे हों,
चाहे इम्तेहान हज़ारों हों,
मोहब्बत भरोसे से मुत्मईन होती है...

सिलसिले...


हर एहसास को हवा कर गयीं यादें,
आज तुम याद आये...
अश्क नज़रों में सजा गए वादे,
आज तुम याद आये...
धुंधली हो चलीं थीं,मेरी हाथों की लकीरें,
यूँ मुट्ठी बाँध कर समेटा करती थी मैं तकदीरें,
छंट गए अंधेरों के साए,
आज तुम याद आये...
वो मेरे कमरे का कोना,जहां करती रही 'हम' को दफन,
जहां सिमटी रहीं तसवीरें,ओढ़ मेरे आँचल का कफ़न,
वहाँ अब रौशनी झिलमिलाये,
आज तुम याद आये...
हर एहसास को हवा कर गयीं यादें,
आज तुम याद आये...
अश्क नज़रों में सजा गए वादे,
आज तुम याद आये...

रूह-ऐ-महबूस ...


बारिश की फुहार में जब दरख्तों के पत्ते भीग जाते हैं,
कुछ दमक कर खिलते हैं,कुछ बेदम हो गल जाते हैं...
मोम से अरमान जब जुनूँ की तपिश से छुए जाते हैं,
कुछ रूह को गर्मातें हैं,कुछ जल के राख हो जाते हैं...
तूफानी समंदर रह रह कर साहिलों से टकराते हैं,
कुछ कश्ती पार लगाते हैं,कुछ सफ़ीने डुबों जाते हैं...
दुनिया से बेखबर क़ाफ़िर,जब सेहरा को अपनाते हैं,
कुछ खुद को पा जाते हैं,कुछ हर शह से जुदा हो जाते हैं...

क़यास...


तुम्हारे न होने का एहसास,जो अँधेरे कह पाते,
मुमकिन है के तुम आ जाते...
मेरी आँखों की बे-नूरी जो मेरे अश्क़ कह पाते,
मुमकिन है के तुम आ जाते...
मेरे सीने में दफन सागर गर खुद बयाँ हो पाते,
मुमकिन है के तुम आ जाते...
दिल के बुझते सिसकते अंगारे गर सुलग पाते,
मुमकिन है के तुम आ जाते...
तम्मनाओं के जनाज़े जब हर सू नज़र आते,
मुमकिन है के तुम आ जाते...
ग़म के पैमाने धड्कनों की तरहां छलकाते,
मुमकिन है के तुम आ जाते...
बेवफा वादों के तकाज़ों का गिला सुन पाते,
मुमकिन है के तुम आ जाते...

तिल्सिम..


ज़ख्म गहराते रहे, यूँ ही सहते रहे हम रात दिन,
तेरे ख़्वाबों की तिश्नगी में जिए जाते रहे...
फासले बढ़ते रहे,यूँ ही चलते रहे हम रात दिन,
तेरे दीदार की मयकशी में जिए जाते रहे...
तूफ़ान उफनते रहे,यूँ ही टकराते रहे हम रात दिन,
तेरे साहिल होने की जुस्तजू में जिए जाते रहे...
सब्र आज़माते रहे,यूँ ही थमते रहे हम रात दिन,
तेरे जुनूनी इश्क़ की तिल्सिम में जिए जाते रहे...

पशोपेश...


हमारे पास होकर भी,हमारे पास न हो जब,
इस से ग़मगीन ग़म होता है क्या कोई...
पहलु में होकर भी दूरियाँ गहराती जाती हैं जब,
इस से तन्हा तन्हाईयां होती हैं क्या कोई...
दो दिलों के फासले,अफ़सोस, रूहानी हो जब,
इस से वीरान विरानियाँ होती हैं क्या कोई...
हर लम्हा पहाड़ सा,हर सिलसिला बे-सबब,
ऐसी बेरुखी की पशेमानियाँ हैं क्या कोई...
हंगामा यूँ गोया,कहें कुछ निकले कुछ मतलब,
ऐसी मुश्किलातों की आसानियाँ हैं क्या कोई..

निर्वस्त्र नवीनता...


नेकी के समंदर में गोता लगा लेंगे,
वीभत्स ऐब अपने कैसे भी छुपा लेंगे...
नेता या अभिनेता का भेस अपना लेंगे,
लच्छेदार लफ्फाज़ी कर सब को पटा लेंगे...
कमर तोड़ मेहनत कर जो न पा सके,
एक सनसनीखेज़ स्कैम के ज़रिये कमा लेंगे...
कभी बाबा का जामा नम्रता से ओढ़ कर,
जनता की सादगी को जब चाहे भुना लेंगे....
हम प्रजातंत्र में पनपे भ्रष्ट निर्भीक कीड़ें हैं,
नासूर बन परजीवी की भांति सेंध लगा लेंगे...

इज़हार...


मेरे हाथों में मुझे उभरते हुए तूफ़ान नज़र आते हैं,
मेरी तकदीर की लकीरें किया करती हैं अक्सर ऐसा....
मेरी साँसों में बेचैनी के साए रातों में नज़र आते हैं,
मेरी यादें सितम यूँही किया करतीं हैं अक्सर ऐसा....
सभी इरादों के,भूले वादों के धुंधलके नज़र आते हैं,
मेरी आँखें जो रोती हैं तो किया करती हैं अक्सर ऐसा...
दरो दिवार को टटोल कर रोशन ख़याल नज़र आते हैं,
हसरत-ऐ-उम्मीद किया करती हैं अक्सर ऐसा....
ये क्या मंज़र है तुम्हारी आमद के आसार नज़र आते हैं,
सोती पलकें ख्वाब संजोया करती हैं अक्सर ऐसा...

अनायस...


चलो आज यादों की परतों को धूप दिखाते हैं,
ज़िन्दगी के दरख़्त से कुछ पत्ते चुन लायी हूँ मैं...
मायूस दिल को अश्कों की सीलन से बचाते हैं,
मोहब्बत को ख़ुदाई का मक़ाम दे आयीं हूँ मैं...
रूह में झाँक कर खुद से किये वादे दोहराते हैं,
इंसानियत को जीने का अंदाज़ बना पायी हूँ मैं...
लफ़्ज़ों के तक्कल्लुफ़ से आज़ाद हो जाते हैं,
अनकही की कही समझने का हुनर सीख आयीं हूँ मैं...

सामना..


सावन में अश्कों को समझा नहीं कभी,
पतझड़ में हर इक अश्क को बहता हुआ अब देख...
मुझको तू समझाता रहा,इन नजदीकियों का सबब,
मुझको मुझ ही से तू हर लम्हा बिछड़ता हुआ अब देख....
रौनक़-ऐ-जहां में बिखरतीं रहीं खुशियाँ,
अंधेरों में मेरे अक्स को सिमटता हुआ अब देख....

एक ख़याल...


जो आंसूं का कोई रंग होता,
तो क्या क्या न हुआ होता...
ज़िन्दगी का ये बेनूर चेहरा,
सतरंगी रंगों का आइना होता...
जो उठती आँखें फ़लक की ओर,
तो नीली बूंदों से हर ग़म बयां होता...
जो नज़रें टिकतीं खिले गुलाबों पर,
तो सुर्ख हर अश्क का क़तरा होता...
खिलते बाग़ों पर थमती जो निगाह,
तो सब्ज़ ग़म का बरसता सैलाब होता...
हर एक रंग से रिश्ता होता,हरेक रंग से इज़हार होता,
अश्कों को चुप चाप बरसने का सुकूँ ना हासिल होता...

कशमकश...


ज़िन्दगी की धुप छाओं में उठते हैं कईं सवाल,
हुई सुबह तो सोचूंगी,कौन सा ख्वाब संजोना है....
बिखरा है पतझड़ के पत्तों सा मेरा हर ख़याल,
हुई बारिश तो सोचूंगी,किस मिटटी में अरमान बोना है....
यूँ तो समंदर के भंवर में फस गए जो,हो जाते हैं बेहाल,
पहुंची मझदार में तो सोचूंगी,कश्ती को किस साहिल पर डुबोना है....

तुमको लगता होगा...


ज़िन्दगी की हर धड़कन जी रही होगी,
नम सुबह के ओस में खिल रही होगी,
तुमको लगता होगा...
पलकों पे नींद की पालकी सजाती होगी,
लोरियों से सपनो को रिझाती होगी,
तुमको लगता होगा...
नयी आस के मोती माला में पिरोती होगी,
मुस्कुराती आँखों से एक आंसूं न रोती होगी,
तुमको लगता होगा...

मनुहार...


ली के शुभ अवसर पर,अदभुद विस्मरणों की अनुभूति कहे,
जो सपनो में मिले अवसर,होली के मनमोहक रंगों से सजने का...
कान्हा जी को संग ले,गोपी बन,चंचल मन रचाए रास लीला,
एक पल भी विचलित ह्रदय ना माने,ऐसे स्वप्न से जगने का...
जिस क्षण रसिक बिहारी,मुस्कुरा कर बांसुरी की धुन छेड़ें,
निंद्रा में ही लीन रह,मन मयूर बन चाहे उसी ध्यान में बसने का...
बरसाने की राधा मैं,मेरे नटखट,अनूठे,गोपियों से घिरे श्याम वो,
जागूँ कभी ना,डर जो लागे,ईर्ष्या रुपी सर्प के डसने का..

कुछ बातें...


मैं तुम सी क्यूँ नहीं हूँ,
ये पूछते क्यूँ हो,
मैं खुद सी हूँ नहीं अब,
समझते क्यूँ नहीं हो तुम ...
मेरे गम क्यूँ स्याह हैं, ,
पूछा है तुम्हारे सवेरों ने,
मैं रातें सींचती हूँ,
समझते क्यूँ नहीं हो तुम ...
कहा क्या करते हैं सब,
ये बताते हो मुझे रहते,
मैं कहती कुछ नहीं हूँ,
समझते क्यूँ नहीं हो तुम ...
है तुमसे रोशन ज़माना,
जानती हूँ मैं,
मेरे अंधेरों का सबब,
समझते क्यूँ नहीं हो तुम ...
महकती ओस हूँ मैं,
खिले फूलों पे पलती हूँ,
बस एक दिन सूख जाऊँगी,
समझते क्यूँ नहीं हो तुम ...

वादें इरादे इश्क मुश्क की बातें,
मेरी निगाह से तेरी निगाह तक...
हर दिल में खुशबू की सौगातें,
मेरी पनाह से तेरी पनाह तक....

आलम-ऐ-बदहवासी...


हकीक़त की हकीक़त भला पहचानेगा कौन?
आंखों में जमे सुर्ख लहू को जानेगा कौन?
हम तो बस इस सफ़र में एक क़तरा हैं,
हमारी हस्ती के मिटने बाद,हमें गर्दानेगा कौन?
ग़ुरबत में गिरा आंसूं संभालेगा कौन?
उजडती कोख़ का आँचल सहलाएगा कौन?
वक़्त की कसौटी पर खुशियाँ दम तोड़ती हैं,
ऐसी बेबस राहों की वीरानी संवारेगा कौन?
ज़माने की तेज़ रफ़्तार का तूफ़ान थामेगा कौन?
गुज़रते हुए लम्हों की वखत मानेगा कौन?
बीता हुआ हर हसीं लम्हा लौट कर आता नहीं है,
रुक कर,रोक कर,उन लम्हों को पुकारेगा कौन?

अर्श...


जो दीद की ख्वाहिश रही दिल में इबादत बन कर,
ईद का चाँद तेरी चौखट पे आ के चमकेगा...
जो इश्क की सच्चाई रही ज़बा पे चाहत बन कर,
तेरी आँख का हर आंसूं,उसकी नज़र से छलकेगा...
जो तलब की जुस्तजू रही रूह में आयत बन कर,
हर एक शेह में उस सितमगर का नूर झलकेगा...

इब्तेदा...


सर्द हवाओं में सिमटी नर्म सी ओंस की बूदें,
मेरी हर सांस में तेरे होने का एहसास भर गयीं...
जो रहती थी मैं खुद में रमती,थमती,चहकती,
मेरा तेरे तस्सवुर में होने का गुमाँ भर गयीं...
मेरी बंद हथेलियों में कुछ मंतर फूँक कर,
किस्मत से चुरा,कुछ नयी लकीरें भर गयीं...
चमचमाती शब् की रोशन चांदनी से भिगो कर,
एक खुशनुमा सुबह का खुमार भर गयीं....
कईं रातों से आंखों में सपने थामें बैठी हूँ मैं,
पूछूंगी जब सहर आएगी,की ये क्या कर गयी...

स्वयंसिद्धा ...


मुझमें सदियाँ समां जातीं हैं,
इस जहां की ऐसी मिसाल हूँ मैं...
जो हर किरदार को रोशन करती है,
कभी न बुझने वाली मशाल हूँ मैं...
This is done with a pink color pencil,on a pink sheet...to bring out the very essential feel of a girl..woman...enchantress...sufferer...forbearer, of grief,agonies, ecstasies and much more than a human mind can comprehend...many roles she juggles...many facets she imbibes within her tiny frame,but unfathomable sea of a mind,heart,body and soul!!!

मनोवेदना...


कितने रंगों से सजाया था मुझको,
ऐ ज़िन्दगी,क्यूँकर बहलाया था मुझको...
ख़ुश्बू-ऐ-चमन जो दिखलाया था मुझको,
एक सुनहरी जाल में फ़साया था मुझको....
खूबसूरती की बुलंदी पर पहुंचाया था मुझको,
तो फिर क्यूँ दर बदर भटकाया था मुझको...
लाखों की आँख का नूर बनाया था मुझको,
और फिर खुद ही से दूर भगाया था मुझको...
जहां एक लम्हे का चराग़ सा जलाया था मुझको,
वहीं गुमनाम अँधेरे में झुलसाया था मुझको...

आँखें...


दिल की बिसात पर बिछती आँखें...
कभी उठती,कभी झुकती आँखें...
कभी एक पल में संभलती आँखें,
वहीं फिर ज्वलंत देहेकती आँखें...
बेज़बानी में हर बात कहती आँखें,
अपने कोनो में,ग़म समेटती आँखें...
अपने सच से कहीं मुंह मोड़ती आँखें,
न जाने कितने दिल तोड़ती आँखें...
हर एक आस को बिखेरती आँखें,
तो कहीं खुद ही खुद से जुड़ती आँखें...
कभी चंचल,कभी बोझिल आँखें,
कभी मृग की तृष्णा सी भटकती आँखें....
किसी मासूम बच्चे की शरारत सी आँखें,
लुका छिपी करती,छिपती छिपाती आँखें...
कुछ जीवंत पलों सी चहकती आँखें,
कभी सदियों सी वीरान खंडहर आँखें...
अपनों की इस भीड़ में गुम सुम आँखें,
कितनी असहाए कितनी बेबस आँखें....
पत्थरीली,निष्ठुर,कठोर आँखें,
कभी ख़ूनी,कभी खंजर आँखें...
वक़्त की चाल पर चलती आँखें,
वक़्त बदलते,बदलती आँखें...
कभी रेशमी जाल बुनती आँखें,
कभी लाल डोरों में सुलगती आँखें...
तुम्हे कहती,तुम्हे सुनती आँखें,
हर आरज़ू का आइना आँखें...
नींद के ख़ुमार में अलसाई आँखें,
किसी की याद में भरमाई आँखें....
ओंस की बूंदों में नर्म पड़ती आँखें,
आंसुओं को प्रतिबिंबित करतीं आँखें...
कभी दिल खोल कर अपनाती आँखें,
कभी खुले दिल पर संग बरसाती आँखें...
कभी गरीब की चौखट सी तरसती आँखें,
कभी रईस की नींद को तरसती आँखें...
क्षन्न्भंगुरता की असीमित समझ आँखें,
जीवन मृत्यु के भ्रम को परखती आँखें...
लालायित सम्मोहन का मोहपाश हैं आँखें,
ज़िन्दगी के सुर पर थिरकता जोश हैं आँखें...

अंतर्नाद ...


लोभ लिप्त इस दुनिया में,
एक दिलेर कर्ण चाहिए...
बेसहारा हुए वृद्धो को,
एक श्रवण सा पुत्र चाहिए...
तृप्ति मन की ढूँढ पाने को,
शबरी का चखा बेर चाहिए...
व्यभिचार से पीड़ित इस समाज को,
एक और इसा चाहिए...
पहचान को तरसते अनाथों को,
धाए माँ सी कोख चाहिए...
युद्ध और सीमाओँ में उल्झोँ को,
बुद्ध सा निर्वाण चाहिए,
अच्छे और बुरे के इस मंथन में,
रावण का पक्ष भी चाहिए...
इस सदी के 'माणूस' को,
एक और मसीहा चाहिए...

आशुफ्ताह ...


हम को गहन सन्नाटो की आवाज़ भाती है,
रौशनी क्यूँ,अपने से अंधेरों को टटोलने आती है...
देखा है कभी किसी को हर सांस को गिनते हुए?
इनकी एहमियत तो बिखरने पर समझ आती है...
ता उम्र जो जिंदादिली की मिसाल बन जीते हैं,
ज़िन्दगी उनको भी अचानक धोखा दे जाती है...
दुनिया की रफ़्तार में खुद को खोये,भागते फिरते हैं,
ज़मीर की आवाज़ उन तक पहुँच नहीं पाती है...
कैसे खोज पायेंगे अपने वजूद को इस कोलाहल में,
जहां बेनाम भीड़ में परछाइयां तक उलझ जाती हैं.

जज़्बा-ऐ-दिल..


कुछ थम सी गयी थी मैं उस दिन ....
मेरे इर्द गिर्द तसवीरें,
बनती रहीं,मिटती रहीं...
आंखों में लाल डोरियाँ,
जमती रहीं,बहती रहीं...
यादों की अथाह बस्तियां,
बस्ती रहीं,उजड़तीं रहीं...
उम्मीदों की खूबसूरत कड़ियाँ,
संवरती रहीं,बिखरती रहीं....
जज़बातों की बेदिल आंधियां,
डंसती रहीं,हसती रहीं...
कशमकश की उलझती गुत्थियां,
बहकती रहीं,सुलगती रहीं...
यूँ तो चार सू,हर चीज़ हरकत में आती रही,
अपने जिंदा होने की मायूसी आँख भरमाती रही...
मैं बस थम सी गयी थी उस दिन....

सुबह का मंज़र...


राह-ऐ-मुन्तज़िर की किस्मत में,
थमना नहीं होता...
वक़्त की मुक्कमल रफ़्तार में,
रुकना नहीं होता...
आंखों के लाल डोरों के इज़हार में,
कहना नहीं होता...
दिल के हसीन रूमानी क़रार में,
संभलना नहीं होता...
तेज़ाबी तहरीर के नश्तरी वार में,
दिलासा नहीं होता...
शर्मसार हुए ऐतबार में,
सेहना नहीं होता...
शतरंज की बिछी बिसात में,
पलटना नहीं होता...
ज़हर-ऐ-इश्क से बेदम दिल-ऐ-गमखार में,
धड़कना नहीं होता...

तुम...


मेरी ना के हाँ होने तक,
तुम रुकोगे ये बयाँ होने तक...
जिस्म से रूह जुदा होने तक,
तुम ठहरोगे ये क्या होने तक...
हर खामोशी के जबाँ होने तक,
तुम थमोगे आरज़ू अयां होने तक...
अश्कों में मेरा खून रवां होने तक,
तुम बहोगे क्या मेरे फ़ना होने तक...
हर सू खुशबू का समां होने तक,
तुम मह्कोगे गुलिस्ताँ होने तक...
हर ज़र्रे के आफ़ताब होने तक,
तुम तपोगे ख़ुद ख़ाक होने तक...
मेरे ख्वाबों की तामीर होने तक,
तुम बसोगे मेरी नज़रों में पीर होने तक...
वादों के हार में ख़ुद को पिरोने तक,
तुम निखरोगे चमकती शमशीर होने तक...
इबादतगाह में बुत होने तक,
तुम रहोगे मेरे परस्तिश का सामां होने तक..

इज़हार...

बेजा रिश्ते के नाम पर,
आसरा गलत,उम्मीद गलत,
शिकवा गलत,शिकायत गलत,
ज़ोर गलत,हकों का शोर गलत,
न करो ज़िक्र दुनियादारी की रवायतों का,
अनजान अपनों का करीबी परायों का,
हर तरफ रोज़ नए रंगों में रंगे इन जज्बों में,
क्या खबर क्या सही क्या गलत...

इल्तेजा...

अपनी यादों की पनाह में,ये लम्हे गुज़र जाने दो,
शाम ढलते की ओस,मेरी पलकों पे ठहर जाने दो...

अभी कुछ प्यास बाक़ी है,अभी रूखे हैं लब मेरे,
आज इस सुरमई झील की गहराई में उतर जाने दो...

मेरी हर आह में,एक उम्र की रुस्वाइयाँ हैं बिखरी,
मुझे अपने आगोश के सिरहाने पर सिमट जाने दो...

ये जो उलझे से रहते हैं बेमुरव्वत गेसू मेरे,
तुम्हारी एक नज़र की हयाई में सुलझ जाने दो...

मेरा सूखे दरख्तों से अब वास्ता कैसा,
मुझे खिलते रौनक-ऐ-चमन में महक जाने दो...

पि ना पाऊंगी अब बेबस जुदाई का ज़हर,
मेरी नम आँखों को कुछ अश्क तो छलकाने दो...

सितम ये नहीं के हर अरमान की मुक्कमल हद है,
सितम ये के अरमानो के छुअन को यूँही जाने दो...

मेरी मोहब्बत की इल्तिजा जान कर जाना,
ये नहीं के बिना सुने कह दो,के जाने दो...

सपने..

कुछ ऐसा होता है समां,जब आतिश-ऐ-ख़्याल होते हैं अपने,
ग़म भी हसीं लगते हैं,दिल के करीब हों जब पासबाँ अपने,
दोज़ख सी ज़िन्दगी भी ले आती है जन्नत-ऐ-जाँ रूबरू अपने,
क़त्ल होतीं हैं ख्वाहिशें,रक्स-ऐ-मुसलसल जिंदा रहते हैं सपने...

वोह...

मुझे बेवफा कह कर,क्या खूब वफ़ा निभाता रहा,
ये ज़माना हर चंद मेरा सब्र आज़माता रहा...

बेरुख़ी को नफ़रत समझ मुझपर नश्तर चलाता रहा,
जहां चाहत न थी,वहाँ मुहब्बत के ख़्वाब सजाता रहा...

बे-परवाही से ,रोज़ रोज़,मुझे बेक़द्र यूँही बहलाता रहा,
जब वक़्त का पहिंया थम गया,तो अश्क़ बहाता रहा...

यादों के पन्नो पर,चंद हर्फ़ सजा,दिल को भरमाता रहा,
खयालों में सपने बुनं,ज़ख्मों का सिलसिला पनपाता रहा...

दफन हैं जहां बेपनाह दर्द,उनमें इज़ाफा फरमाता

कौन..

खुद के होने का गुमां क्यूँ करते हैं सब,
वक़्त की शमशीर कब किस को मिटा डाले,
जानता है कौन...

तूफानों से लड़ गुज़रने का दावा करते हैं सब,
तूफ़ानी दरिया कब अपना रुख मोड़ डाले,
जानता है कौन...

खुदा की बनायी कुदरत को रौंदते हैं सब,
खुदाई कब कुदरत का क़हर बरसा डाले,
जानता है कौन...

अपनी हदों को सोच समझ कर मान लें सब,
ये जन्नत कब खुद को दोज़ख बना डाले,
जानता है कौन....
मेरी मायूस नज़र तेरी तलबगार सही,
मेरी चेहरे में झलकता बेपनाह प्यार सही,
मैं वक़्त के साए में बिखरता एक मंज़र ही तो हूँ,
आज रोशन हूँ,कल उजड़ा दयार सही....
फिज़ा में ख़ुश्बू सी समा जाती हूँ,
जब जब पाँव तले मसली जाती हूँ,
पंखुरी से फूल बनती तो खिलखिला पाती,
अफ़सोस,वक़्त से पहले ही बिखेर दी जाती हूँ...

चंद सवाल..

उलझती जाती है जिगर में गुंजल सी,
इस पहेली का कोई जवाब तो दे दो सनम...

हरचंद,नफरतों की आग सीने में भड़काए,
क्यूँकर किये जाते हैं और इश्क सनम...

तुम्हारी तस्वीर से मुख़ातिब होकर,
क्यूँ ज़ार ज़ार अश्क बहाए जाते हैं सनम...

रात आँखों में गुजारते हैं,की ख्वाब में न आओ,
तुम दिन में नज़रों में समां कर क्यूँ सताते हो सनम...

जो ज़ख्म बुनियाद बनते,ताउम्र इस दूरी के,
क्यूँ उनको ज़ेहन में दफनाये जाते हो सनम...

अधूरी आस,अधूरी प्यास,और एक अधूरी चाहत,
हमारे जिस्म में जान भी क्यूँ छोड़े जाते हो सनम....

मौला...

परवरदिगार,इस जहां को बना कर,कुछ तो हासिल हुआ होगा,
लबों पर अपने बाशिन्दोँ के जब,दुआओँ का असर सुना होगा...

आईने से चमकते पानी के चश्मों में फिज़ा का अक्स दिखा होगा,
उस पल बनाने वाले को खुद क़ाएनात पे गुमान हुआ होगा...

किस हसरत से ज़र्रे ज़र्रे को रोशन कर,हर शेह को चुना होगा,
हुस्न के नायाब जलवों का ताना बाना,नाज़ुक तारों से बुना होगा...

ऐ ज़िन्दगी..

तुझे ऐ ज़िन्दगी हमने हर एक रंग से सवारा है,
न अब जा छोड़ कर मझदार में,मुझे तेरा सहारा है...

जहां तक जा सकें नज़रें,वहाँ तेरा नज़ारा है,
इसी उम्मीद में मैंने खुद को भंवर में उतारा है....

मासूम दिल की तहों में बसी मेरी रूह ने पुकारा है,
अब दग़ा दे या रुसवाई,तेरा हर इनाम गंवारा है...
सुबह होती है,शाम होती है,
ये गुफ्तगू सरेआम होती है...

बंध जाए हदों में बेपरवाह हवाएं,
ऐसी कोशिशें नाकाम होती है...

आशिक जिसे खुद रुसवा करते हैं,
वो मोहब्बत तो यूँही बदनाम होती है....

भगवान...

हाँ...मैंने भगवान् को देखा है!
अपनी माँ के आँचल की छाँव में सिमटी हर ख़ुशी की छुअन में,
हर इम्तिहान की घड़ी में पिता के मज़बूत विश्वास की छाँव में,
शिक्षक गणों से प्राप्त मार्ग दर्शन और सीख की असीम कृपा में,
भाई बहनों के परस्पर अथाह प्रेम,स्नेह,असीमित दुलार में,
मित्रजनो द्वारा हर उतार चड़ाव में दिए अविचलित,अटल साथ में,
खिलखिलाते बच्चों की मधुर मीठी मासूम मुस्कुराहटों में,
हर क्षण,कण कण में बसे जीवन की प्रफ्फुलित विविधता में,
मैंने भगवान् को देखा है...:-)

साया...

एक रौशनी का साया,
चीरता हुआ आता है शब्-ऐ-आगोश को,
अनजाने में हमसे कोई झरोखा खुला रह गया...

हलक में अटकी सांस,
कहीं दफना देती है बेबसी की चीख को,
उम्मीद का दामन ऊँगली में ही लिपटा रह गया...

ओस में लिपटा ग़ुलाब,
सह लेता है आफ़ताब की तपिश को,
यकबयक बाग़बान में,ख़ुशबुओ का सिलसिला रह गया...

तन्हाई...

मुझे मेरी तन्हाइयों की बेकसी दिलासा देती है,
किसी के पास न होने की तस्सली देती है,
यूँ तो गुज़रते हैं कईं ज़लज़ले इस जान पर,
वो ना-उम्मीदी की हर ताबीर को हवा देती है....

ख्वाबों की टूटती बेबसी को पनाह देती है,
गर्मजोशी से भरी यादों को सर्द बेपरवाही देती है,
यूँ तो सुकूँ बेहद मिलता है तन्हा रोने में,
वो अश्कों को पी,नज़रों को वीरानियाँ देती है....

हिज्र के फायेदोँ की फेहरिस्त रोज़ थमा देती है,
वफाओं के बदले मिली जफ़ाओं की याद दिला देती है,
तिनका तिनका जोड़ कर जो थामे रहते हैं,
उस दिल के आशियाने को बे-क़द्रों से बचा देती है...

Monday, September 24, 2012

ज़रा ज़रा...

ज़रा कुछ बोल दो...

क्यूँ यूँ रहते रहे हो तुम,
क्यूँ यूँ सहते रहे हो तुम,
के अब ज़बां खोल दो,
ज़रा कुछ बोल दो…

ये दुनिया बावफ़ा न बन पाएगी,
तुम्हारी अनकही न समझ पाएगी,
के अब इन लबों को खोल दो,
ज़रा कुछ बोल दो…

तुम्हारे चेहरे की ताज़गी मुरझा जायेगी,
सीने में दफ़्न आग भी धुआं हो जायेगी,
वक़्त रहते हाल-ऐ-दिल टटोल लो,
ज़रा कुछ बोल दो…

अश्क

रुला गया वो शख्स किस क़दर हमको,
अब मुस्कराहट दबे पाँव गुज़र जाती है...

होश में आते तो होश रहता हमको,
उसकी बेरुखी हमें मदहोश किये जाती है...

अपने दिल-ओ-जां का निगेबां बनाया जिसको,
खुद की नाक़ाम बर्बादी उसमें नज़र आती है...

बस ज़रा और सितमगर जी लेने दो हमको,
वरना ये आह आने से पहले चली जाती है...

उसके किस्से सुनाया न करो हमको,
जिसकी यादें हर लम्हा तड़पाती हैं...

कभी तो भिगोएगी इश्क की बूँदें हमको,
इसी उम्मीद में आँखें अश्क हर शब् गिराती हैं...

रूखे बंजर से जो दिखते हैं दिल के मकां हमको,
उनकी रौनक का अरमान लिए,ओंस बरस जाती है...

बारिश

जब बरसतीं हैं तो क्या बरसतीं हैं,
जुलाई की बारिश सी ये दुआएं...
जब तरसती हैं तो क्या तरसतीं हैं,
बरस भर तन्हा सी ये सदाएँ..

सुनो...

कभी सुन सकें तो सुनें...
शमा से बेबस पिघलते मोम की अनकही...
सूखे पत्तों की शाख़ पे दम तोड़ती सिसकी...
अंधेरों में सहमे,ना-उम्मीद ख्वाबों की बेकसी...
एक बूँद को तरसते पपीहे की आखरी हिचकी...
कस्तूरी की तड़प में बेकल मृग की तिश्नगी...
इंतज़ार में बे-क़रार नज़रों की ख़ामोशी...

अब बस...

मेरी अनकही से तू डरता है,
ये कहकर मुझे बदनाम न कर...

गुफ़्तगू-ऐ-नज़र चाँद और मेरी है,
तू उसको यूँ सर-ऐ-आम न कर...

जिस हुस्न-ऐ-जमाल में मदहोश है,
चढ़ता सूरज है,उसे सलाम न कर...

जिन नजरों में पीर बसा करता है,
उन नजरों से क़त्ल-ऐ-आम न कर...

ज़िदों से दिल जीते नहीं जाते हैं,
सियासती चालों का अहतराम न कर...

तितली..

कुछ आस समेटे हूँ,कुछ ओंस समेटे हूँ,
इस वक़्त के गुंजल में,चंद सांस समेटे हूँ...
उड़ती जो हर आह सी,छूती फ़लक को यूँ,
इस क्षणिक से जीवन में,एक उम्र समेटे हूँ...

बस यूँही...

शुरू होते,तो थमते नहीं थे,फ़साने उसके,
मुस्कुरा उठती हूँ,याद करके,फ़साने जिसके ...

बस एक चेहरे में सिमटे थे,ज़माने उसके,
नज़रों से शुरू हो,हथेली तक थे,ज़माने जिसके....

लबों पे मेरे सजते,थिरकते थे,तराने उसके,
दिल-ऐ-रहगुज़र से रूह में समाते थे,तराने जिसके...

आज याद आते हैं नश्तर-ऐ-दिल बहाने उसके,
वक़्त के तकाज़ों ने समझा दिए,बहाने जिसके...