Tuesday, September 25, 2012

कशमकश...


ज़िन्दगी की धुप छाओं में उठते हैं कईं सवाल,
हुई सुबह तो सोचूंगी,कौन सा ख्वाब संजोना है....
बिखरा है पतझड़ के पत्तों सा मेरा हर ख़याल,
हुई बारिश तो सोचूंगी,किस मिटटी में अरमान बोना है....
यूँ तो समंदर के भंवर में फस गए जो,हो जाते हैं बेहाल,
पहुंची मझदार में तो सोचूंगी,कश्ती को किस साहिल पर डुबोना है....

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