Tuesday, September 25, 2012

तुम...


मेरी ना के हाँ होने तक,
तुम रुकोगे ये बयाँ होने तक...
जिस्म से रूह जुदा होने तक,
तुम ठहरोगे ये क्या होने तक...
हर खामोशी के जबाँ होने तक,
तुम थमोगे आरज़ू अयां होने तक...
अश्कों में मेरा खून रवां होने तक,
तुम बहोगे क्या मेरे फ़ना होने तक...
हर सू खुशबू का समां होने तक,
तुम मह्कोगे गुलिस्ताँ होने तक...
हर ज़र्रे के आफ़ताब होने तक,
तुम तपोगे ख़ुद ख़ाक होने तक...
मेरे ख्वाबों की तामीर होने तक,
तुम बसोगे मेरी नज़रों में पीर होने तक...
वादों के हार में ख़ुद को पिरोने तक,
तुम निखरोगे चमकती शमशीर होने तक...
इबादतगाह में बुत होने तक,
तुम रहोगे मेरे परस्तिश का सामां होने तक..

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