Monday, September 24, 2012

ज़रा ज़रा...

ज़रा कुछ बोल दो...

क्यूँ यूँ रहते रहे हो तुम,
क्यूँ यूँ सहते रहे हो तुम,
के अब ज़बां खोल दो,
ज़रा कुछ बोल दो…

ये दुनिया बावफ़ा न बन पाएगी,
तुम्हारी अनकही न समझ पाएगी,
के अब इन लबों को खोल दो,
ज़रा कुछ बोल दो…

तुम्हारे चेहरे की ताज़गी मुरझा जायेगी,
सीने में दफ़्न आग भी धुआं हो जायेगी,
वक़्त रहते हाल-ऐ-दिल टटोल लो,
ज़रा कुछ बोल दो…

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