सर्द हवाओं में सिमटी नर्म सी ओंस की बूदें,
मेरी हर सांस में तेरे होने का एहसास भर गयीं...
जो रहती थी मैं खुद में रमती,थमती,चहकती,
मेरा तेरे तस्सवुर में होने का गुमाँ भर गयीं...
मेरी बंद हथेलियों में कुछ मंतर फूँक कर,
किस्मत से चुरा,कुछ नयी लकीरें भर गयीं...
चमचमाती शब् की रोशन चांदनी से भिगो कर,
एक खुशनुमा सुबह का खुमार भर गयीं....
कईं रातों से आंखों में सपने थामें बैठी हूँ मैं,
पूछूंगी जब सहर आएगी,की ये क्या कर गयी...
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