Tuesday, September 25, 2012

आशुफ्ताह ...


हम को गहन सन्नाटो की आवाज़ भाती है,
रौशनी क्यूँ,अपने से अंधेरों को टटोलने आती है...
देखा है कभी किसी को हर सांस को गिनते हुए?
इनकी एहमियत तो बिखरने पर समझ आती है...
ता उम्र जो जिंदादिली की मिसाल बन जीते हैं,
ज़िन्दगी उनको भी अचानक धोखा दे जाती है...
दुनिया की रफ़्तार में खुद को खोये,भागते फिरते हैं,
ज़मीर की आवाज़ उन तक पहुँच नहीं पाती है...
कैसे खोज पायेंगे अपने वजूद को इस कोलाहल में,
जहां बेनाम भीड़ में परछाइयां तक उलझ जाती हैं.

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