IZHAAR...
Tuesday, September 25, 2012
फिज़ा में ख़ुश्बू सी समा जाती हूँ,
जब जब पाँव तले मसली जाती हूँ,
पंखुरी से फूल बनती तो खिलखिला पाती,
अफ़सोस,वक़्त से पहले ही बिखेर दी जाती हूँ...
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment