Monday, September 24, 2012

मैं उड़ना चाहती हूँ,
खुले आकाश ने कभी मुझको रोका नहीं ,
हवाओं की छुअन ने कभी टोका नहीं,

मेरे जूनून का उन्माद जब रुकता नहीं,
वो धुंधले बादलों का साया थमता नहीं,

मेरी इन मखमली यादों ने मुझे रोका नहीं,
मोम सी पिघलती आहों ने टोका नहीं,

निराशाओं की जंजीरों को काटा नहीं,
मैंने भी अपना कोई ग़म बाटा नहीं,

वो लहराती हुई पतंग की मुस्कान सी,
वो पतझड़ के पत्तों की उड़ान सी,

अँधेरे में भटकती अंतहीन चाह सी,
फलक से उतरती दुधिया राह सी,

चल पड़ी मैं थामे आस की डोर सी,
फिर भी फ़ैली मायूसी चहुँ ओर सी,

मेरी अठखेलियाँ हुई सुनसान सी,
एक ज़लज़ले में बिखरी सी,हैरान सी,
मैं उड़ना चाहती थी...

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