कुछ थम सी गयी थी मैं उस दिन ....
मेरे इर्द गिर्द तसवीरें,
बनती रहीं,मिटती रहीं...
आंखों में लाल डोरियाँ,
जमती रहीं,बहती रहीं...
यादों की अथाह बस्तियां,
बस्ती रहीं,उजड़तीं रहीं...
उम्मीदों की खूबसूरत कड़ियाँ,
संवरती रहीं,बिखरती रहीं....
जज़बातों की बेदिल आंधियां,
डंसती रहीं,हसती रहीं...
कशमकश की उलझती गुत्थियां,
बहकती रहीं,सुलगती रहीं...
यूँ तो चार सू,हर चीज़ हरकत में आती रही,
अपने जिंदा होने की मायूसी आँख भरमाती रही...
मैं बस थम सी गयी थी उस दिन....
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