Monday, September 24, 2012

हाँ,...कितनी छोटी नज़र आती थी...
तुम और मैं मिलकर गुड्डे गुड़िया का विवाह रचाते थे,
कभी सबको इक्कठा कर,मैं अपनी धौंस जमाती थी,
मैं सचमुच छोटी नज़र आती थी
फिर भाइयों के हाथों सताई,मनाई,हँसाई जाती थी,
मैं तब भी छोटी ही रह जाती थी
हुडदंग मस्ती और शैतानी में,सबकी नानी कहाती थी,
तब भी छोटी ही रह पाती थी
कभी कभी बड़ी हो जाती थी,
जब भोली सी,सुसंस्कृत और शांत माँ को,
दुष्ट रिश्तेदारों से असहाय झूझता पाती थी,
जब पापा को बुराई और अन्याय के खिलाफ,
अडिग और निडर पा,गौरान्वित हो जाती थी,
हाँ मैं बड़ी हो जाती थी...
:-)

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