Monday, September 24, 2012

मोहब्बत...


ऐ खुदा तेरे इस जहां में कोशिशें पुरज़ोर हैं,
मेरी आज़ादी के लुटने का मंज़र आ गया...

बड़ी बेबाक़ बेतकल्लुफ़ बेसाख्ता रही अब तक,
सियासती चालों में बिछने का मंज़र आ गया...

अनगिनत नाम दे मशहूर किया सब ने बहुत,
अब मेरे वजूद की रुसवाइयों का मंज़र आ गया...

गरीब की कोठरी में सजती तो संवर जाती शायद,
अमीरों के बाज़ार में बिखरने का मंज़र आ गया...

फकीरों की ज़बान पर पनपती थी कलाम बन कर,
बेहूदा रिसालों के पन्नो में बिकने का मंज़र आ गया...

चिलमन के पार जलती हुई शमा की पाकीज़ा लौ थी,
सर-ऐ-आम इख्लाक़ से गिरने का मंज़र आ गया...

परवरदिगार के दर की एक जिंदा पुरनूर हस्ती का,
हवस की चोटों से ज़ाया हो,मरने का मंज़र आ गया...

मैं इनायत थी,जज़्ब-ऐ-तमन्ना थी,पाक दुआ थी मैं,
खुद अपनी बदगुमाँ लाश को दफ़नाने का मंज़र आ गया...

1 comment:

  1. OMG so many beautiful creations !! Including this one !! looking forward to enjoying ALL of them !! Thank You !!

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