किताबों में सजती हैं रूहें बेदाग़,
ज़िन्दगी कहाँ इतनी हसीं होती है,
जज़्ब कर हर ज़ख्म को मुस्कुरा दे,
आशिकी कब इतनी बेहतरीन होती है...
मुक्कमल एक दर हो तो,
दर-ओ-दीवार दिखते हैं,
नए रंग रोज़ खिलते हैं,
इश्क से रोशन ज़मीन होती है...
न फना होने के दावे हों,
ना गिने रातों को तारे हों,
चाहे इम्तेहान हज़ारों हों,
मोहब्बत भरोसे से मुत्मईन होती है...
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