सावन में अश्कों को समझा नहीं कभी,
पतझड़ में हर इक अश्क को बहता हुआ अब देख...
मुझको तू समझाता रहा,इन नजदीकियों का सबब,
मुझको मुझ ही से तू हर लम्हा बिछड़ता हुआ अब देख....
रौनक़-ऐ-जहां में बिखरतीं रहीं खुशियाँ,
अंधेरों में मेरे अक्स को सिमटता हुआ अब देख....
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