दुआओं का आसरा न सही,दुआओं की उम्मीद रहती है,
फ़लक से बूंदों की तलबगार जिस तरहां ज़मीन रहती है...
इस दिखावे के आल़ा बाज़ार में पोशीदा तस्वीरें रहती है,
जहां बे-नक़ाब रूहें हैं बस्ती वहाँ ज़िन्दगी 'फ़क़ीर' रहती है...
ये कैसी मेहसुसियातें हैं,जो सिक्को सी उछलती फिरती हैं,
जो होती हैं, धड़कती हैं,गज़ब खामोश उनकी चीखें रहती हैं...
फ़लक से बूंदों की तलबगार जिस तरहां ज़मीन रहती है...
इस दिखावे के आल़ा बाज़ार में पोशीदा तस्वीरें रहती है,
जहां बे-नक़ाब रूहें हैं बस्ती वहाँ ज़िन्दगी 'फ़क़ीर' रहती है...
ये कैसी मेहसुसियातें हैं,जो सिक्को सी उछलती फिरती हैं,
जो होती हैं, धड़कती हैं,गज़ब खामोश उनकी चीखें रहती हैं...